निस्यंदन के उद्देश्य एवं सिद्धांत


निस्यंदन  के उद्देश्य एवं सिद्धांत        
                 अन्तः ग्राही  में लगे छन्ने  तथा अवसादन टंकी से जल के निकलने के उपरांत भी उसमें महीन कण एवं जीवाणु रह जाते है। इनको हटाने के लिए इस जल को बालू की मोटी परत से गुजारते हैं।  इस प्रक्रिया को निस्यंदन (filteration ) कहते हैं।  निस्यंदन से निम्लिखित लाभ हैं - 
            (i ) रोगजनक  जीवाणु कम हो जाते हैं। 
            (ii ) जल का कुस्वाद , रंग तथा गंध दूर हो जाते हैं। 
            (iii ) जल से कुछ रसायन भी अलग हो जाते  हैं। 
            (iv ) जल से निलम्बित  तथा कोलायडल कण हट जाते हैं। 
            (v ) जल का परिष्करण हो जाता है।  
    निस्यंदन  की सम्पूर्ण प्रक्रिया निम्लिखित क्रियाओ के द्वारा  सम्पन्न होती है -  

          (अ ) बल कृत  छानना  ( Mechanical  Strainings )-   जब जल बालू के कणों  के मध्य से गुजरता हैं , तब उनके बीच विद्यमान खाली स्थान (voids ) में निलम्बित  अशुद्धियाँ  रह  जाती ,है  तथा स्वच्छ पानी बहर निकल जाता   है। 

          (ब ) जैव क्रिया (biological  action ) - बालू के मध्य रिक्त स्थानों में जीवाणु जमा हो जाते हैं  तथा फिर कणों के चारो तरफ झिल्लीदार परत (जीवाणुओं  की ) बन जाती हैं।  इन परतों में  जीवाणुओं के समूह होते हैं।  जल में  कार्बनिक पदार्थ आते हैं उन्हें जीवाणु भोजन के रूप में ग्रहण कर  लेते हैं  , तथा जल काफी हद तक कार्बनिक अशुद्धियो  रहित  हो  जाता हैं।  

         (स )  विद्दुत  अपघटनपरिवर्तन (Electrolytic  change )   जल में  निलम्बित  अशुद्धियों आयनित होकर एक विशेष चार्ज धारण कर   हैं।  फ़िल्टर बालू  के कणों  में इसके विपरीत आवेश होता है अतः  दोनों एक - दूसरे   उदासीन कर देते हैं।  बालू कण  तब तक अशुद्धियों का अवशोषण करते हैं , जब तक कि  विद्युत् आवेश उदासीन न हो जाये।  

           (द ) अवसादन (sedimentation ) बालू के कणों  के बीच के रिक्त स्थान  छोटी - छोटी अवसादन टंकियों  कार्य करते हैं , जिनमे निलम्बित  कण अवसादित  होकर बालू के कणों से चिपक जाते हैं।, तथा निस्यंदन के पश्चात् परिष्कृत जल प्राप्त  होता है। 

                                         


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