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Showing posts from May, 2022

Centrifugal and Reciprocating Pump in hindi

सेण्ट्रीफ्यूगल तथा रेसिप्रोकेटिंग पम्प में अंतर              सेण्ट्रीफ्यूगल पम्प में जल  सेण्ट्रीफ्यूगलबल के कारण चढ़ता है जबकि रेसीप्रोकेटिंग पम्प में पिस्टन के दबाव के कारण  जल ऊपर चढ़ता है।   सेण्ट्रीफ्यूगल पम्प से निस्सरण सतत  होता है जबकि  रेसी प्रोकेटिंग  पम्प में निस्सरण रुक - रुक कर होता है।  सेण्ट्रीफ्यूगल पम्प सुघड़ (compact ) होते हैं तथा शोर कम करते हैं जबकि  रेसी प्रोकेटिंग  पम्प बड़े  आकार के तीव्र  शोर उत्पन्न करने वाले होते हैं।  सेण्ट्रीफ्यूगलपम्प में चलायमान अवयब काम होते हैं अतः  इनकी मरम्मत तथा रखरखाव का खर्चा काम होता है। इसके विपरीत  रेसी प्रोकेटिंग    पम्प में चलायमान अवयव अधिक होते है अतः  मरम्मत तथा रखरखाव का खर्चा अधिक होता है।   सेण्ट्रीफ्यूगल पम्प का शीर्ष तथा काम निस्तरण  के लिए दक्ष होतें हैं जबकि अधिक शीर्ष तथा अधिक निस्सरण के लिए  रेसी प्रोकेटिंगपम्प का प्रयोग उचित होता है  सेण्ट्रीफ्यूगल पम्प की लागत रेसी प्रोकेटिंग  पम्प की तुलना में कम होती है    सेण्ट्रीफ्यूगल पम्प से निलम्बित अशुद्धियों वाला जल तथा सीवेज भी पम्प  किया जा सकता है जबकि  रेसी प्रोकेटिंग पम

Coagulation and coagulation for water in hindi

जल के लिए कोएग्युलेशन एवं स्कंदन            -  पानी में सिल्ट के  बारीक़ कण तथा कोलायडल कण यदि निलम्बित  अवस्था में तो उन्हें साधारण तलछटीकरण क्रिया  से टैंको में नीचे  बैठने के लिए पर्याप्त समय लग सकता हैं।  कोलायडल कण विद्युत् आवेशित होने के कारण हमेशा गतिशील बने रहते हैं और गुरुत्व भार  के कारण कभी नीचे नहीं बैठते।  इन्हें दूर करने के लिए पानी में ऐसे रसायन  (chemicals ) डालने पड़ते हैं जो बारीक निलंबित कणों  को मिलाकर अघुलनशील  तह (insoluble precipitate ) में परिवर्तित कर देते हैं जिसे उर्णिका  (folc  ) कहते हैं।उर्णिका    एक प्रकार से काफी सरे कोलायडल कणों के मिलने से बना एक गुच्छा है जो भारी होने के कारण पानी में जल्दी बैठ जाता है।    उर्णिका की तह धीरे -धीरे नीचे बैठ जाती है।  पानी में ऐसे  रसायनों की क्रिया को स्कंदन (coagulation ) तथा इन रसायनो को स्कंदन (caogulant ) कहते हैं।  इस प्रकार स्कंदन प्रक्रिया से तलछटीकरण क्रिया त तीव्र  हो जाती है और बारीक़ निलम्बित  कण  उर्णिका की परत के रूप में नीचे बैठ जाते हैं।                   इसके अतिरिक्त स्कंदन प्रक्रिया से पानी का रंग ,स्वाद

water sources in hindi

जल के स्त्रोत   जल  मुख्य स्रोतों को मुख्यतया दो वर्गों  में  बाटा  गया है - (i )    पृष्ट  जल स्त्रोत  (surface wa ter  soorces)          (अ ) संचित वर्षा का जल (stored  rain  water )          (ब ) जल धाराएं  (sreams )         (स ) नदिया  (rivers )          (द ) झीलें (lakes )          (य ) परिबद्ध जलाशय  ( impounded  reservoirs )         (र ) नहरें  (canals )  (ii )   भूमिगत स्त्रोत ( graound water sources )          (अ ) झरने (springs )         (ब ) अन्तः स्पंदन गैलरी ( infilteration  gallary )        (स ) सरंध्र   पाइप ( porous  pipes )        (द ) अन्तः स्पंदन कुएँ  ( infilteration  wells )        (य ) नलकूप  (tube  wells )        (र )   कुएं  (wells )       thank you 

types of waterfalls in hindi

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झरने  के प्रकार     भौम   जल जब भूमि की  सतह पर आ  जाता है  तो झरने बनते हैं। सामान्यतया झरने    तीन प्रकार के होते हैं -            (1 ) गुरुत्व  झरने ( Gravity  springs ) -   जब भूमि तल का गिराव सामान्य जल के नीचे  आ जाता है , तब जलग्राही  परत वायुमंडल  के सम्पर्क में आ जाती है , इस प्रकार भूमिगत जल भूमि से बहार निकलने लगता  है , इसे  ही गुरुत्व झरना कहते है।  ऐसा  घाटियों  में अधिक वर्षा के कारण  भूमि जल ताल ऊपर आने  से भी हो जाता  है ऐसे झरनो में जल निरंतर  प्राप्त नहीं होता  है  ।                                             चित्र 3.1   गुरुत्व झरना  (ii) सतही  झरने  ( Surface  Springs ) - किसी   अप्रवेश्य   परत  की रूकावट के कारण  अधोभूमि  जल भूमि की सतह पर बहने लगता है तो झरना बनता है।  ऐसे झरने को सतही झरना कहते हैं।  अप्रवेश्य स्तर  जहाँ भूमि की सतह पर खुलता है , वहाँ  से झरना फूट पड़ता है।  इनसे प्राप्त जल की मात्रा घटती -बढ़ती रहती है।                                                     चित्र 3.2  सतही झरना  (iii ) उत्सुत झरने (Artesian  Springs ) - जब जलग्राही  स्तर दो अप्

निस्यंदन के उद्देश्य एवं सिद्धांत

निस्यंदन  के उद्देश्य एवं सिद्धांत                           अन्तः ग्राही  में लगे छन्ने  तथा अवसादन टंकी से जल के निकलने के उपरांत भी उसमें महीन कण एवं जीवाणु रह जाते है। इनको हटाने के लिए इस जल को बालू की मोटी परत से गुजारते हैं।  इस प्रक्रिया को निस्यंदन (filteration ) कहते हैं।  निस्यंदन से निम्लिखित लाभ हैं -              (i ) रोगजनक  जीवाणु कम हो जाते हैं।              (ii ) जल का कुस्वाद , रंग तथा गंध दूर हो जाते हैं।              (iii ) जल से कुछ रसायन भी अलग हो जाते  हैं।              (iv ) जल से निलम्बित  तथा कोलायडल कण हट जाते हैं।              (v ) जल का परिष्करण हो जाता है।       निस्यंदन  की सम्पूर्ण प्रक्रिया निम्लिखित क्रियाओ के द्वारा  सम्पन्न होती है -              (अ ) बल कृत  छानना  ( Mechanical  Strainings ) -     जब जल बालू के कणों  के मध्य से  गुजरता हैं , तब उनके बीच विद्यमान खाली स्थान (voids ) में निलम्बित  अशुद्धियाँ  रह  जाती ,है  तथा स्वच्छ पानी बहर निकल जाता   है।              (ब ) जैव क्रिया (biological  action ) - बालू के मध्य रिक्त स्थानों में जीवा

प्राकतिक जल चक्र

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प्राकतिक  जल चक्र  वर्षण  से भूमि पर जो जल गिरता है , इसका कुछ भाग भूमि ताल पैर बहता है तथा कुछ भूमि के नीचे चला जाता है।  भूतल का जल नदी - नालो के रूप में भी मिल जाता है।  यह जल सूर्य की प्रखर किरणों से वाष्पितकृत होकर बादलों के रूप में पहुंच जाता है।  भूमि  नीचे का जल  कुछ भूमि के पास रहता है जिसका कुछ भाग वाष्पीकरण से वायुमंडल में चला जाता है जो अंत में नदियों तथा झीलों  के जल से मिल  जाता है।  वर्षा तथा जल के इस चक्र को जलीय चक्र कहते हैं।            (1 ) अपवाह जल  (Run -off )       वर्षा  के जल का कुछ भाग भूमि तल पर बहकर नदी ,नाले ,झील  इत्यादि में होता हुआ समुद्र  में चला  जाता है।  इसे अपवाह जल कहते है।  वर्षा से प्राप्त अपवाह जल की मात्रा सतह के लक्षणों तथा वायुमण्डली परीस्थियो पर निर्भर करती है।  अपवाह  जल की मात्रा ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का उपयोग करते है-       जंहा ,         R = c x i                                                                                                                    R = अपवाह जल की मात्रा   i =वर्षा के कुल  मात्रा    c = अपवाह गुणा

bhedaghat water fall

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BHEDAGHAT Bhedaghat water fall  Bhedaghat is known for the Dhuandar Falls The Dhuandhar Falls are located on the Narmada River a huge cascade of water that falls from a height of 98 feet. Boating in Bhedaghat especially during the moonlit night would surely make up for an unforgettable experience. The boatmen of these place are storytellers that will tell you about the place in the form of interesting stories. Bhedaghat is a beautifull town in Jabalpur district in the state of Madhya Pradesh, India. It is situated by the side of river Narmada and is approximately 20 km from Jabalpur city. Bhedaghat is famous for the high marble rocks making a valley through which river Narmada flows. The place also has a beautiful waterfall, known as Dhuandhar Falls (literally meaning a stream of smoke, because of its appearance). There are some more spots of tourist interest near the location.The quaint town of Bhedaghat in Jabalpur district is popular with tourists for its misty Dhuandhar fall and co

जल का महत्व और उपयोग in hindi

 जल का महत्व -          वायु के पश्चात् जल ही मानव जीवन की प्राथमिक आवश्यकता है जल के बिना जीवन संभव नहीं है। इसलिए कहा गया है  "जल ही जीवन है " । जल मानव जीवन के साथ -साथ सम्पूर्ण  सृष्टि  के असितत्व  के लिए नितांत  आवश्यक है। मानव सभ्यता के विकास  की कहानी भी जल के महत्त्व का एक ज्वलंत उदाहरण है।  इसलिए सभी प्राचीन सभ्यताए किसी न किसी जल स्त्रोत के निकट ही प्रारम्भ  हुई थीं।          पृथ्वी का 71 % भाग जल से ढका  हुआ है परन्तु समुन्द्रों  में व्याप्त जल जीवन के लिए ज्यादा उपयोगी नहीं है।  जल मनुष्य , पेंड़ -पौधों , जानवरों आदि के लिए नितांत आवश्यक है।  मनुष्य के दैनिक कार्यो जैसे के लिए , खाना पकाने  के लिए ,  स्नान  के लिए , कपडे तथा बर्तन धोने में इसका' उपयोग सर्वदित है।  फसलें उगाने के लिए सिंचाई में भी इसका उचित समय पर उपयोग आवश्यक है।  विभिन्न उद्योग तथा कल -कारखाने  जल के बिना संभव नहीं हैं।  इसके अलावा  जल विद्युत  बनाने में ,आवागमन  (tansportation ), मनोरंजन  (recreation ) , मछली उत्पादन , खेलकूद  इत्यादि के लिए जल आवश्यक है।  जल के उपयोग की मात्रा आजकल सभ्यता